Saturday, 19 April 2014

रचनाकार के नाम... कपिल अनिरुद्ध

रचनाकार के नाम
तुम अजब हो
क्या हो लेते
और फिर देते हो क्या
विष पिया खुद दे दी सब को
विष रहित इक ज़िन्दगी
पी गए तुम जाम कटुता
और पीड़ा के मगर
बांटते फिरते रहे
अमृत प्याले तुम सदा
शान में तेरी कहो
बंदा यह कह सकता है
क्या एक पल में हर पुरानी
शै को करते हो नया
दर्द पीड़ा हर अनादर
मुस्कुरा कर झेलते
और फिर करते सृजन तुम
इक नए तस्बीर का
एक लय का ताल का और
इक नए संगीत का
इस धरा पर रंग कितने
कैसे कैसे धर गए
बेनूर से चेहरों पे तुम
पल में उजाले धर गए
वेदना की लेखनी से
विष को अमृत कर गए