ग़ज़ल
घोर निराशा में भी दृद विश्वास बनाये रखना तुम
अँधियारा फिर फिर हारेगा दीप जलाये रखना तुम
दिनकर तुझ से मिलने इक दिन तेरे घर भी आयेगा
करुणा के अगणित दीपों से घर को सजाये रखना तुम
कभी किसी आकाश में बैठा कोई राह दिखायेगा
परदे सभी झरोखों से ऐ यार हटाये रखना तुम
धरती और आकाश के इक दिन भेद सभी खुल जायेंगे
खुशिओं पे लगाना तुम अंकुश पीड़ा को बढ़ाये रखना तुम
नैनों की इस पगडण्डी पर चल कर वो खुद आएगा
बस राहों पे कपिल सदा कुछ प्रीत बिछाये रखना तुम
घोर निराशा में भी दृद विश्वास बनाये रखना तुम
अँधियारा फिर फिर हारेगा दीप जलाये रखना तुम
दिनकर तुझ से मिलने इक दिन तेरे घर भी आयेगा
करुणा के अगणित दीपों से घर को सजाये रखना तुम
कभी किसी आकाश में बैठा कोई राह दिखायेगा
परदे सभी झरोखों से ऐ यार हटाये रखना तुम
धरती और आकाश के इक दिन भेद सभी खुल जायेंगे
खुशिओं पे लगाना तुम अंकुश पीड़ा को बढ़ाये रखना तुम
नैनों की इस पगडण्डी पर चल कर वो खुद आएगा
बस राहों पे कपिल सदा कुछ प्रीत बिछाये रखना तुम
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