Wednesday, 26 February 2014

a geet by kapil anirudh

तुम प्रेम की इक तान हो 
और मैं हूँ तेरी बांसुरी 

इक खोखली सी लाकड़ी
अधरों पे तुम ने क्या धरी 
मैं थी निर्गुणी थी बेसुरी
तूने कर दिया मुझे बांसुरी

कभी धूल थी कभी राख थी
फिर बांस की इक शाख थी
मुझे छेद डाला था गया
मैं जल गयी मैं थी मरी
तेरी इक छुअन से जी उठी
अमृत प्याला पी उठी
तूने गूँज मुझ में क्या भरी
मैं बन गयी इक बांसुरी

इक शिष्य मैं तुम हो गुरु
इक जिस्म मैं मेरे प्राण तुम
मैं शब्द हूँ तुम भाव हो
दुविधा हूँ मैं समाधान तुम

तुम मधुर हो मैं हूँ माधुरी
तुम तान हो मैं हूँ बांसुरी

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