तुम प्रेम की इक तान हो
और मैं हूँ तेरी बांसुरी
इक खोखली सी लाकड़ी
अधरों पे तुम ने क्या धरी
मैं थी निर्गुणी थी बेसुरी
तूने कर दिया मुझे बांसुरी
कभी धूल थी कभी राख थी
फिर बांस की इक शाख थी
मुझे छेद डाला था गया
मैं जल गयी मैं थी मरी
तेरी इक छुअन से जी उठी
अमृत प्याला पी उठी
तूने गूँज मुझ में क्या भरी
मैं बन गयी इक बांसुरी
इक शिष्य मैं तुम हो गुरु
इक जिस्म मैं मेरे प्राण तुम
मैं शब्द हूँ तुम भाव हो
दुविधा हूँ मैं समाधान तुम
तुम मधुर हो मैं हूँ माधुरी
तुम तान हो मैं हूँ बांसुरी
और मैं हूँ तेरी बांसुरी
इक खोखली सी लाकड़ी
अधरों पे तुम ने क्या धरी
मैं थी निर्गुणी थी बेसुरी
तूने कर दिया मुझे बांसुरी
कभी धूल थी कभी राख थी
फिर बांस की इक शाख थी
मुझे छेद डाला था गया
मैं जल गयी मैं थी मरी
तेरी इक छुअन से जी उठी
अमृत प्याला पी उठी
तूने गूँज मुझ में क्या भरी
मैं बन गयी इक बांसुरी
इक शिष्य मैं तुम हो गुरु
इक जिस्म मैं मेरे प्राण तुम
मैं शब्द हूँ तुम भाव हो
दुविधा हूँ मैं समाधान तुम
तुम मधुर हो मैं हूँ माधुरी
तुम तान हो मैं हूँ बांसुरी
No comments:
Post a Comment