Saturday, 15 February 2014

a geet by kapil anirudh

आली री मैं पिय के अंग लगी 
जिन के सारे अंग मनोहर उन के संग लगी 

मधुर मिलन की बात सखी री कैसे कहूँ मैं क्या बतलाऊँ 
कभी यह सोचूं कुछ न कहूँ मैं कहे बिना पर रह न पाऊं 
बतलाऊँ या न बतलाऊँ कैसी जंग लगी
आली री मैं पिय के अंग लगी .......

क्या बतलाऊँ कैसा प्यार था हर पल उस का इंतज़ार था
लोगों की नज़रों से बच कर कभी मैं सजती कभी संवरती
मुझे यह दुनिया प्यार की दुश्मन बहुत ही तंग लगी
आली री मैं पिय के अंग लगी .......

पिय मिलन की आस में पल पल हुई व्याकुल मैं संकुचाई
कभी याद में नीर बहाया और कभी मैं थी हरषाई
होले होले उस साजन के देखन रंग लगी
आली री मैं पिय के अंग लगी .......

बड़भागी फिर वो दिन आया मुझ से मिलने प्रियतम आया
एक नज़र जो पिया ने देखा मिट गया सारा भाग्य का लेखा
मुझ को अपनी छबी सखी री मस्त मलंग लगी
आली री मैं पिय के अंग लगी .......

अंग से अंग मिला साजन ने मेरा भरम मिटाया
मैं साजन की साजन मेरे अद्भुत भाव जगाया
मैं विरहन फिर बनी सुहागन पिया अर्धांग लगी
आली री मैं पिय के अंग लगी .......

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