कहाँ से आया कहाँ मैं जाता हूँ
यह पहेली समझ न पाता हूँ
रात दिन रेल सा हूँ गर्दिश में
रात दिन दूरियां मिटाता हूँ
रुकने चलने में कोई भेद नहीं
रुकते चलते मैं सीटियां बजाता हूँ
रेल सा गूंजता वो आता है
पटरियों सा बिछा मैं जाता हूँ
मुझ को रोके नहीं कोई सिग्नल
शून्य में गाड़ियां घुमाता हूँ
मील पत्थर नज़र नहीं आते
हर कदम मंज़िलों को पाता हूँ
वो स्टेशन सा मुझ को लगता है
उस के आँचल में चैन पाता हूँ
यह पहेली समझ न पाता हूँ
रात दिन रेल सा हूँ गर्दिश में
रात दिन दूरियां मिटाता हूँ
रुकने चलने में कोई भेद नहीं
रुकते चलते मैं सीटियां बजाता हूँ
रेल सा गूंजता वो आता है
पटरियों सा बिछा मैं जाता हूँ
मुझ को रोके नहीं कोई सिग्नल
शून्य में गाड़ियां घुमाता हूँ
मील पत्थर नज़र नहीं आते
हर कदम मंज़िलों को पाता हूँ
वो स्टेशन सा मुझ को लगता है
उस के आँचल में चैन पाता हूँ