Friday, 24 January 2014

ghazal in punjabi by kapil anirudh

Kapil Anirudh

मित्रो पंजाब के प्रवास ने सहज ही पंजाबी में लिखने की प्रेरणा दी है। दो दिन पूर्व कुछ स्फुरणा हुई और कुछ लिखा गया । उसी स्फुरणा के कुछ अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ।

 छुपके चुपके मार उडारी तोड़ गगन दे तारेयां नूँ
अन्दरो अंदरी नच्ची गाईं गुमसुम लब्बी सारेयां नूँ

मार छलांगां जित लै जा के उच्ची टीसी तूँ सजना
 वेख सकेंगा उत्थे जा के जग दे जित्तु हारेयाँ नूँ

अपना दीबा आपूं बन के रोशन कर दे राहां तूँ
तूँ की करना बाजीगरां दे झूठे सच्चे लारेयाँ नूँ

लिख सकना ताँ लिख लै मन ते उस दा सच्चा नाँ कापिल
छड्ड दे हत्थ विच्च पकडे बैनर भुल्ल जा सारे नारेयाँ नूँ

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