Thursday, 15 May 2014

ghazal by kapil

ग़ज़ल
तेरी सूरत तेरी अदा सुन्दर
हर जगह तुम लगे सदा सुन्दर
तेरा होना मधुर मधुरतम है
तेरे होने का सिलसिला सुन्दर
तेरे सौंदर्य का कहा किस्सा
मेरा अस्तित्व ही हुआ सुन्दर
मूँद आँखें तुम्हें निहारा जब
मौन भाषा ने फिर कहा सुन्दर
मूढ़ सी हो गई चपल चंचल
देख कर सामने सखा सुन्दर

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