मेरी प्रसन्न्ता को सब
जहाँ में भांप लेते हैं
कोई न जानता लेकिन
तुम्ही भरते कुचालें हो
मेरे भीतर बहुत भीतर
तुम्हारे प्रेम की लय पे
कभी जब झूमता हूँ मैं
मेरे अंतस की महफ़िल में
तुम्ही तो नृत्य करते हो
नयन की अश्रु जलधारा
सभी को दीख जाती है
मगर भीतर जो बहती है
तुम्हारे प्रेम की नदिया
सभी अनजान हैं उस से
कोई न देख पाता है....कपिल अनिरुद्ध
जहाँ में भांप लेते हैं
कोई न जानता लेकिन
तुम्ही भरते कुचालें हो
मेरे भीतर बहुत भीतर
तुम्हारे प्रेम की लय पे
कभी जब झूमता हूँ मैं
मेरे अंतस की महफ़िल में
तुम्ही तो नृत्य करते हो
नयन की अश्रु जलधारा
सभी को दीख जाती है
मगर भीतर जो बहती है
तुम्हारे प्रेम की नदिया
सभी अनजान हैं उस से
कोई न देख पाता है....कपिल अनिरुद्ध
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