Sunday, 15 December 2013


ग़ज़ल
आग पानी कभी हवा पानी
मेरे जीवन का सिलसिला पानी 


रंग बदले है वो तो गिरगिट सा
लाल नीला कहीं हरा पानी 


अब तो आँखें भी नम नहीं होती
सब कि आँखों में अब जमा पानी 


कब से सोया पड़ा था आँखों में
तेरे देखे से फिर जगा पानी 


तुम तो पानी पे लफ्ज़ लिखते थे
मेरा हर शब्द ही हुआ पानी 


उस को सागर कहा ज़माने ने
तेरे पानी में जो मिला पानी

No comments:

Post a Comment