Wednesday, 26 February 2014

a geet by kapil anirudh

तुम प्रेम की इक तान हो 
और मैं हूँ तेरी बांसुरी 

इक खोखली सी लाकड़ी
अधरों पे तुम ने क्या धरी 
मैं थी निर्गुणी थी बेसुरी
तूने कर दिया मुझे बांसुरी

कभी धूल थी कभी राख थी
फिर बांस की इक शाख थी
मुझे छेद डाला था गया
मैं जल गयी मैं थी मरी
तेरी इक छुअन से जी उठी
अमृत प्याला पी उठी
तूने गूँज मुझ में क्या भरी
मैं बन गयी इक बांसुरी

इक शिष्य मैं तुम हो गुरु
इक जिस्म मैं मेरे प्राण तुम
मैं शब्द हूँ तुम भाव हो
दुविधा हूँ मैं समाधान तुम

तुम मधुर हो मैं हूँ माधुरी
तुम तान हो मैं हूँ बांसुरी

Saturday, 15 February 2014

a geet by kapil anirudh

आली री मैं पिय के अंग लगी 
जिन के सारे अंग मनोहर उन के संग लगी 

मधुर मिलन की बात सखी री कैसे कहूँ मैं क्या बतलाऊँ 
कभी यह सोचूं कुछ न कहूँ मैं कहे बिना पर रह न पाऊं 
बतलाऊँ या न बतलाऊँ कैसी जंग लगी
आली री मैं पिय के अंग लगी .......

क्या बतलाऊँ कैसा प्यार था हर पल उस का इंतज़ार था
लोगों की नज़रों से बच कर कभी मैं सजती कभी संवरती
मुझे यह दुनिया प्यार की दुश्मन बहुत ही तंग लगी
आली री मैं पिय के अंग लगी .......

पिय मिलन की आस में पल पल हुई व्याकुल मैं संकुचाई
कभी याद में नीर बहाया और कभी मैं थी हरषाई
होले होले उस साजन के देखन रंग लगी
आली री मैं पिय के अंग लगी .......

बड़भागी फिर वो दिन आया मुझ से मिलने प्रियतम आया
एक नज़र जो पिया ने देखा मिट गया सारा भाग्य का लेखा
मुझ को अपनी छबी सखी री मस्त मलंग लगी
आली री मैं पिय के अंग लगी .......

अंग से अंग मिला साजन ने मेरा भरम मिटाया
मैं साजन की साजन मेरे अद्भुत भाव जगाया
मैं विरहन फिर बनी सुहागन पिया अर्धांग लगी
आली री मैं पिय के अंग लगी .......

Tuesday, 11 February 2014

muktak by kapil anirudh

अम्बर के तारों से तेरी भर सकता है खाली झोली एक अकेला 
मरुभूमि को दे सकता है सुरभित पुष्पित सी रंगोली एक अकेला 
एक अकेला दे सकता है अंधिआरे को कड़ी चुनौती
पल में रोशन कर सकता है अंधिआरे कि अंधी टोली एक अकेला

Saturday, 1 February 2014

a ghazal by kail anirudh in hindi

तवी किनारे .........

आ बैठा हूँ तवी किनारे मन में कुछ उद्दगार लिए
भावों के मैं पुष्प हूँ लाया और श्रद्धा के हार लिए

मौन को धारे जल की धारा धोती हर जन का संताप
कैसा निर्मल साँझा आँचल सब के हेतु प्यार लिए

पावन जल से अपने मन का जब भी है अभिषेक किया
मन में गूंजा अद्भुत गुंजन अनुपम इक झंकार लिए

हम ने कलुषित कर्मो की बस कालिख इस में डाली है
फिर भी सब की खातिर सरिता बहती है आभार लिए

सूरज पुत्री तवी धारा पर जननी बन कर उतरी है
आँचल में सब बच्चों के हित उत्सव और त्यौहार लिए
  • Nidhi Mehta Vaid jitni komal nadi ki dhara dikti hai, ussey zayada wage sey behti kyun ki ham sab key dukh santtap ko wo jaldi sey jaldi dur karna chahti hai, aur ja samandar sey milti hai, jiski lahron main asem uchaal hai par bhitar sey wo itna hi shant.
  • Nidhi Mehta Vaid bhaya ji surya putri kisey kaha hai aapne surya ki kirno ko yaa kuch aur plzzz isey samjhaye
  • Joginder Singh लेन-देन व्यवहार जगत का फिर क्यूँ वो इकतरफा हो,
    प्रत्युत्तर प्रदूषण देते पोषण का उपहार लिए...
  • Kapil Anirudh निधि जी, तवी शब्द संस्कृत शब्द तविषी से उपजा है, जिस का एक अर्थ सूर्य पुत्री भी होता है । दार्शनिक एवं वैज्ञानिक ढंग से भी यदि विचार किया जाए तो हमारी पृथ्वी सूर्य से ही तो आई है और नदी का अस्तित्व भी सूर्य के बिना कुछ भी नहीं, अत: सूर्य पुत्री नाम सार्थक कहा जाना चाहिए ।