Friday, 22 August 2014

सुन तो ज़रा ऐ सांवली

सुन तो ज़रा ऐ सांवली .......
क्यों आज दुश्मन बन गयी
वो माधुरी वो सुरमयी
इक बांस की वो बांसुरी 
क्यों बन गयी वैरन तेरी
दोनों में अपनी तान से
जब गूंजते हैं श्याम ही
सौतन हुई फिर क्यों तेरी
वो बांस की इक बांसुरी
वो तो खोखली सी बांस की
थी लाकड़ी इक मधभरी
और तुम भी तो बेजान थी
आधी अधूरी अधमरी
दोनों में अपनी फूँक से
जब प्राण उस ने भर दिए
वो हो गयी इक बांसुरी
तुम्हे कह गए वो श्यामली
फिर हो गयी क्या बात है
किस बात से वैरन बनी
सौतन बनी वो बांसुरी
सुन तो ज़रा ऐ सांवली
सुन तो ज़रा कुछ तो बता

कृष्ण कन्हैया प्रकट हुए हैं

कृष्ण कन्हैया प्रकट हुए हैं अंधियारी सी कारागार में
आविर्भाव हुआ मोहन का कष्टों के इस अन्धकार में
जन्मों के संताप मिटे सब युगों युगों की मिटी निराशा
भागे तम अवसाद भी भागे मनमोहन की देख के आभा
व्याकुल मन को मिला सहारा दुखों की इस हाहाकार में
कृष्ण कन्हैया प्रकट............................................
सत्य की एक झलक पाते ही झूठ के पहरेदार सो गए
भय आतंक के ताले टूटे कष्टों के सब चिन्ह खो गए
परिवर्तित हो गयी निराशा केशव की ही जयजयकार में
कृष्ण कन्हैया प्रकट............................................
केशव के चरणों से छू कर शांत हुआ यमुना का जल भी
छाया कर दी शेषनाग ने मुग्ध हुआ देवों का दल भी
विलय हो गयी हलचल सारी शान्तरूप में शान्ताकार में
कृष्ण कन्हैया प्रकट............................................
शंख बजे डमरू भी बाजे बाजे बंसी दोल नगाड़े
करते मंगल गान मुनी सब चहुँ ओर बहते रस धारे
नृत्य भी देखो नाच रहा है जीवन के इस सभागार में
कृष्ण कन्हैया प्रकट............................................
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Tuesday, 12 August 2014

Ghazal Kapil Anirudh

तुम हो अंबर तो इक उड़ान हूँ मैं
तेरे होने की दास्तान हूँ मैं
तूने मंज़िल को रास्ता बक्शा
तेरी रह का ही इक निशान हूँ मैं
हर कदम इक नई चुनौती है
हर कदम एक इम्तिहान हूँ मैं
तेरी करुणा के नील सागर को
देखता बन के आसमान हूँ मैं