सुन तो ज़रा ऐ सांवली .......
क्यों आज दुश्मन बन गयी
वो माधुरी वो सुरमयी
इक बांस की वो बांसुरी
क्यों बन गयी वैरन तेरी
वो माधुरी वो सुरमयी
इक बांस की वो बांसुरी
क्यों बन गयी वैरन तेरी
दोनों में अपनी तान से
जब गूंजते हैं श्याम ही
सौतन हुई फिर क्यों तेरी
वो बांस की इक बांसुरी
जब गूंजते हैं श्याम ही
सौतन हुई फिर क्यों तेरी
वो बांस की इक बांसुरी
वो तो खोखली सी बांस की
थी लाकड़ी इक मधभरी
और तुम भी तो बेजान थी
आधी अधूरी अधमरी
थी लाकड़ी इक मधभरी
और तुम भी तो बेजान थी
आधी अधूरी अधमरी
दोनों में अपनी फूँक से
जब प्राण उस ने भर दिए
वो हो गयी इक बांसुरी
तुम्हे कह गए वो श्यामली
जब प्राण उस ने भर दिए
वो हो गयी इक बांसुरी
तुम्हे कह गए वो श्यामली
फिर हो गयी क्या बात है
किस बात से वैरन बनी
सौतन बनी वो बांसुरी
किस बात से वैरन बनी
सौतन बनी वो बांसुरी
सुन तो ज़रा ऐ सांवली
सुन तो ज़रा कुछ तो बता
सुन तो ज़रा कुछ तो बता