Tuesday, 25 March 2014

शीर्षक विहीन एक कविता: कपिल अनिरुद्ध

चुप धरती मौन अम्बर 
चाँद भी जम्हाई जैसे 
ले रहा है 
कारवां सारा ही जैसे थम गया है 
काफिला क्या वक़्त का भी रुक गया है 
किस के कहने पर मगर फिर
बादलों की टोली नभ पर
खेल सा इक खेलती है
कौन कहता है पवन को
बहते जाओ
किस ईशारे पर बताओ
मेघ बरसें
रात के कानों में जा कर
कौन बोलो कह रहा है
बिन रुके ही अपने पथ पर बढते जाओ
काम जो सौंपा है उस को करते जाओ

Tuesday, 18 March 2014

Holi by kapil


हर पल हर क्षण जग आधारा
देखो होली खेल रहा है
भर पिचकारी देखो उस ने
आसमान में रंग बिखेरे
फाग उड़ा कर मनमोहन ने 
इंद्रधनुष के रंग बनाये
लाल सुनहरी हरे गुलाबी
फूल उसी की होली के हैं
सूर्यमुखी वो गेंदा पंकज
रंगे उसी ने इन रंगों में
अद्भुत चित्र बनाये उस ने
अनुपम रंग बिखराये उस ने
रत्नाकर को नील गगन को
रंगा है उस ने अपने रंग में
हरियाली खुशहाली उस के
रंगों का ही करतब जानों
खो कर उस ने प्रेम रंग में
रंग डाली यह सृष्टि सारी
शब्द शब्द पे हर अक्षर पे
मारी उस ने भर पिचकारी
उस के ही रंगो से सारे
देखो होली खेल रहे हैं
ऊपर बैठा देख रहा वो
जादू अपने ही रंगों का
जिन रंगों से उस ने सब को
रंग डाला है उन रंगों को
देखो खुद पे डाल रहा वो
अपने ही रंगों से पल पल
स्वयं वो होली खेल रहा है
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Monday, 10 March 2014

a geet by kapil anirudh

श्याम तुम से प्रेम कर के श्यामली मैं हो गयी
सांवले से प्रीत जोड़ी सांवली मैं हो गयी
कल तक थी कंचन कामिनी इक चंचला सी दामिनी
क्या जादू तूने कर दिया इक रंग मुझ में भर दिया 
वो कामिनी वो दामिनी देखो हुई है सांवली, अब श्यामली
कह दो मुझे तुम श्याम या फिर श्याम की ही श्यामली
भांवरे से प्रीत कर के भांवरी मैं हो गयी
श्याम तुझ से प्रेम कर के ........................................
पूछें मुझे सखियाँ मेरी तुझे क्या हुआ तुझे क्या हुआ
सुन ऐ सखे मैं क्या कहूँ कुछ भी कहा जाता नहीं
हर शब्द अब लाचार है वह कुछ भी कह पाता नहीं
बस इसलिए मैं गौण हूँ दिखती भी हूँ पर मौन हूँ
चाँद से है प्रीत जोड़ी यामिनी मैं हो गयी
श्याम तुझ से प्रेम कर के ........................................

Saturday, 1 March 2014

ghazal by kapil anirudh

ग़ज़ल 
घोर निराशा में भी दृद विश्वास बनाये रखना तुम 
अँधियारा फिर फिर हारेगा दीप जलाये रखना तुम 

दिनकर तुझ से मिलने इक दिन तेरे घर भी आयेगा 
करुणा के अगणित दीपों से घर को सजाये रखना तुम

कभी किसी आकाश में बैठा कोई राह दिखायेगा
परदे सभी झरोखों से ऐ यार हटाये रखना तुम

धरती और आकाश के इक दिन भेद सभी खुल जायेंगे
खुशिओं पे लगाना तुम अंकुश पीड़ा को बढ़ाये रखना तुम

नैनों की इस पगडण्डी पर चल कर वो खुद आएगा
बस राहों पे कपिल सदा कुछ प्रीत बिछाये रखना तुम