एक मुहाबरा है चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात परन्तु भारतीय दर्शन कहता है रौशनी तो सब तरफ है अँधेरे का कोई अस्तित्व ही नहीं है, इसी दर्शन को समर्पित है यह पंक्तियाँ। …।
प्रकाश पर्व कि शुभ कामनायों सहित। ....
चार दिन भी यह अँधेरा अब नहीं टिक पायेगा
चांदनी हर रात हर इक दीप जलता जाएगा
चांदनी क्यों चार दिन की और अँधेरा हर तरफ
झूट कहता हर अँधेरा अपने मुँह की खायेगा
रौशनी से इस अँधेरे की मोहब्बत देखिये
इक किरण की देख आभा उस में ही खो जाएगा
रात हो जब भी अंधेरी दिन भी काला जब दिखे
मन में हो विश्वास दिन इक रौशनी का आएगा
प्रकाश पर्व कि शुभ कामनायों सहित। ....
चार दिन भी यह अँधेरा अब नहीं टिक पायेगा
चांदनी हर रात हर इक दीप जलता जाएगा
चांदनी क्यों चार दिन की और अँधेरा हर तरफ
झूट कहता हर अँधेरा अपने मुँह की खायेगा
रौशनी से इस अँधेरे की मोहब्बत देखिये
इक किरण की देख आभा उस में ही खो जाएगा
रात हो जब भी अंधेरी दिन भी काला जब दिखे
मन में हो विश्वास दिन इक रौशनी का आएगा