ग़ज़ल
कुछ नहीं है यहाँ मगर फिर भी
खो गए रास्ते डगर फिर भी
सब को चाहत अमन की है लेकिन
हो के रहता है इक समर फिर भी
कितने उजड़े मिटे हैं सदियों से
बन के रहता नया नगर फिर भी
लाख दुश्बरियां हों रस्ते में
फतह होता है हर शिखर फिर भी
बे असर हो गयीं दुआएं सब
एक चुप्पी में है असर फिर भी
चाहे कितन घना अँधेरा हो
हो के रहती है इक सहर फिर भी
खुद से नज़रें चुराता हर कोई
देखती सब को इक नज़र फिर भी
जिस के आने की कुछ उम्मीद नहीं
आ गया वो कभी अगर फिर भी
अब न कोई कहीं करिश्मा है
थम लो तुम कपिल जिगर फिर भी
कुछ नहीं है यहाँ मगर फिर भी
खो गए रास्ते डगर फिर भी
सब को चाहत अमन की है लेकिन
हो के रहता है इक समर फिर भी
कितने उजड़े मिटे हैं सदियों से
बन के रहता नया नगर फिर भी
लाख दुश्बरियां हों रस्ते में
फतह होता है हर शिखर फिर भी
बे असर हो गयीं दुआएं सब
एक चुप्पी में है असर फिर भी
चाहे कितन घना अँधेरा हो
हो के रहती है इक सहर फिर भी
खुद से नज़रें चुराता हर कोई
देखती सब को इक नज़र फिर भी
जिस के आने की कुछ उम्मीद नहीं
आ गया वो कभी अगर फिर भी
अब न कोई कहीं करिश्मा है
थम लो तुम कपिल जिगर फिर भी
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