Wednesday, 6 November 2013

a ghazal by kapil anirudh

ग़ज़ल
क्या कहूं मैं कहाँ कहाँ सावन 
खूब बरसा यहाँ वहाँ सावन 

कच्चे रस्तों पे बिछ गयी मखमल 
राह गुम पावों के निशाँ सावन

जिस ने सावन में चोट खाई हो
उस की हर बात हर बयाँ सावन

दिल की हर आग पानी पानी है
मेरी आँखों का हर धुआं सावन

अब के कुछ इस तरह वो बरसा है
आँख 
म दिल का हर बयाँ सावन

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