ग़ज़ल
क्या कहूं मैं कहाँ कहाँ सावन
खूब बरसा यहाँ वहाँ सावन
कच्चे रस्तों पे बिछ गयी मखमल
राह गुम पावों के निशाँ सावन
जिस ने सावन में चोट खाई हो
उस की हर बात हर बयाँ सावन
दिल की हर आग पानी पानी है
मेरी आँखों का हर धुआं सावन
अब के कुछ इस तरह वो बरसा है
आँख नम दिल का हर बयाँ सावन
क्या कहूं मैं कहाँ कहाँ सावन
खूब बरसा यहाँ वहाँ सावन
कच्चे रस्तों पे बिछ गयी मखमल
राह गुम पावों के निशाँ सावन
जिस ने सावन में चोट खाई हो
उस की हर बात हर बयाँ सावन
दिल की हर आग पानी पानी है
मेरी आँखों का हर धुआं सावन
अब के कुछ इस तरह वो बरसा है
आँख नम दिल का हर बयाँ सावन
No comments:
Post a Comment