Wednesday, 6 November 2013

a ghazal by kapil anirudh

ग़ज़ल 
तुम सदा से ही नये हो हम पुराने हो गए 
हम तो राही बन न पाए तुम ठिकाने हो गए 

जो ज़माने के लिए थे उन से थे अन्जान सब 
और जो अपने लिए थे जाने माने हो गए

शून्य में कुछ खोजती बोलती आँखें तेरी
एक इक तेरी अदा के हम दीवाने हो गए

नींव थे तुम इस मकां की नाम पट्टी हम बने
तेरी हस्ती गुम रही अपने फ़साने हो गए

खाक़ से फूटा तुम्हारी ज्योति का अंकुर मगर
तेरे होने से ही रौशन सब ज़माने हो गए

रौनकें सब इस जहाँ की भार हम पर बन गई
दर्द दुनिया के मगर तेरे ख़जाने हो गए

उलझने यह मुश्किलें और दर्द के पर्वत सभी
तेरी रहमत के कपिल सच्चे बहाने हो गए

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