Friday, 15 March 2019

भारत गान-2

भारत गान-2
विरदी साहिब का यह कथन कि ‘भारत साकार से निराकार और निराकार से साकार होता रहा है’- अपने आप में अनवरत रूप से बहने वाली उस दार्शनिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धारा की बात करता है जो इस भूखंड विशेष को भारत बनाती है। इस राष्ट्र को विशिष्ट से अति विशिष्ट बनाती है। इसी संदर्भ में यहाँ के खेत खलिहान, गाँव, पर्वत, नदियाँ, वनस्थलियाँ भी साधारण नहीं। नदियाँ मात्र जल का भंडार नहीं बल्कि तन के साथ साथ मन को भी निर्मल करने वाली हैं। नदियों के घाट, साधकों के आराधना, पूजा स्थल तथा देवी देवताओं के वास स्थल हैं। ललित निबंध ‘लोभ और प्रीति’ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं – यदि किसी को अपने देश से प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु, पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, पत्तों, वन, पर्वत, नदी, निर्झर सब से प्रेम होगा। ..... यदि देश प्रेम के लिए हृदय में जगह करनी है तो देश के स्वरूप से परिचित और अभ्यस्त हो जाओ। बाहर निकलो तो आँखें खोल कर देखो की खेत लहलहा रहे हैं, नाले झड़ियों के बीच से कैसे बह रहे हैं। टेसू के फूलों से वनस्थली कैसे लाल हो रही है। चौपायो के झुंड चरते है, चरवाहे तान लड़ा रहे हैं। अमराइयों के बीच गाँव झांक रहा है।……..क्रमशः.....कपिल अनिरुद्ध

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