भारत गान - 3
भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा वैश्विक राष्ट्रवाद से मूलतः अलग है। हमारा राष्ट्र विश्व से अलग करके देखा ही नहीं जा सकता। यहां राष्ट्र की अवधारणा वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात सारा विश्व ही मेरा परिवार है, के भाव से ओतप्रोत है। तभी तो महोपनिषद् उदघोष करता है - अयं बन्धुरयं नेतिगणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ (महोपनिषद्, अध्याय ४, श्लोाक ७१)
अर्थ - यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है।
जब बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय अपने उपन्यास आनंदमठ के लिए राष्ट्रगीत रचते हैं तो वंदे मातरम का उद्घोष करते हैं। बंकिमचंद्र की धरती मां, ही माँ भारती है। यही हमारे राष्ट्रवाद की विशेषता है। हमारे यहां वंदे मातरम का गान करने वाला, धरती मां की वंदना करने वाला एक ही समय में मानवतावादी एवं राष्ट्रवादी होता है। यदि हम इस मूल अवधारणा से दूर होंगे तभी संकट आएंगे। हमें तो प्रातः उठते ही धरती मां पर पांव रखने से पूर्व ही क्षमा प्रार्थना करने को कहा जाता है, और हम कहते हैं - समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले | विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ||
अर्थात हे पृथ्वीदेवी ! आप समुद्र रूपी वस्त्रो को धारण करने वाली हैं, पर्वतरूपी स्तनो से सुशोभित है तथा भगवान विष्णु की पत्नी हैं, आपको नमस्कार है, मेरे द्वारा होने वाले पाद-स्पर्श हेतु मुझे क्षमा करें |
भारतीय राष्ट्रवाद की अवधारणा वैश्विक राष्ट्रवाद से मूलतः अलग है। हमारा राष्ट्र विश्व से अलग करके देखा ही नहीं जा सकता। यहां राष्ट्र की अवधारणा वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात सारा विश्व ही मेरा परिवार है, के भाव से ओतप्रोत है। तभी तो महोपनिषद् उदघोष करता है - अयं बन्धुरयं नेतिगणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ (महोपनिषद्, अध्याय ४, श्लोाक ७१)
अर्थ - यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है।
जब बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय अपने उपन्यास आनंदमठ के लिए राष्ट्रगीत रचते हैं तो वंदे मातरम का उद्घोष करते हैं। बंकिमचंद्र की धरती मां, ही माँ भारती है। यही हमारे राष्ट्रवाद की विशेषता है। हमारे यहां वंदे मातरम का गान करने वाला, धरती मां की वंदना करने वाला एक ही समय में मानवतावादी एवं राष्ट्रवादी होता है। यदि हम इस मूल अवधारणा से दूर होंगे तभी संकट आएंगे। हमें तो प्रातः उठते ही धरती मां पर पांव रखने से पूर्व ही क्षमा प्रार्थना करने को कहा जाता है, और हम कहते हैं - समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले | विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ||
अर्थात हे पृथ्वीदेवी ! आप समुद्र रूपी वस्त्रो को धारण करने वाली हैं, पर्वतरूपी स्तनो से सुशोभित है तथा भगवान विष्णु की पत्नी हैं, आपको नमस्कार है, मेरे द्वारा होने वाले पाद-स्पर्श हेतु मुझे क्षमा करें |
भाव यह कि जिसे धरती बंधन के संस्कार जन्म घुट्टी में दिए जाते हो उसका राष्ट्रवाद संकीर्ण कैसे हो सकता है। उसका राष्ट्रवाद मानवतावाद से अलग कैसे हो सकता है।
......क्रमशः........कपिल अनिरुद्ध
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