Saturday, 9 March 2019

sun to zara ae sanwali

इत बांसुरी बजी है उत बाँवरी हुई सब 
इत बांसुरी पुकारे उत कौन रोक पाए 
नयनों को मूँद जब वो बंसी में प्राण फूंके 
फिर इक अदा लगन से कितने ही सर हैं झूमें 
इत सुरमयी जगत है उत श्यामली हुई सब 
इत बांसुरी बजी है.............
कहीं थिरकते हैं पाँव कहीं हाथ घूमते हैं
बंसी भी मुग्ध है अब इसे श्याम चूमते हैं
श्यामल घटा ने घेरा तो दामिनी हुई सब
इत बांसुरी बजी है..................
उत श्याम की हैं तानें इत श्यामली का नर्तन
उत श्याम का है गुंजन इत श्यामली का अर्चन
बन राग श्याम गूंजे और रागिनी हुई सब
इत बांसुरी बजी है................कपिल अनिरुद्ध

No comments:

Post a Comment