भारत गान-4
भाव में रत्त भारत, प्रकाश में रत्त भारत, अनवरत रुप से बहने वाली सांस्कृतिक,आध्यात्मिक धारा, भारत । किसी भोगोलिक इकाई, किसी सीमा, में एक ही समय मैं बंधा भी है और मुक्त भी। यह जाने बिना भारत का गौरव गान हो ही नहीं सकता। त्याग, प्रेम और संवेदना के गुण ही भारत को भारत बनाते है। इन गुणों का हम में अभाव ही भारतीयता का अभाव है। हमारी सीमाओं के प्रहरियों को यह गुण तो जन्म घुट्टी में मिलते हैं। सीमओं का रक्षक तो अंतिम श्वास लेते हुए भी सब की रक्षा, सब के सुख के भाव से ओत प्रोत होता है। इन्हीं भावोंं को अपनी इस कविता में संजोने का प्रयास किया है। यह मेरा भारत नमन है, देश रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त होने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि है।......
मातृभूमि तेरा सुत है तेरी शरण
कर लो स्वीकार मेरा यह अंतिम नमन
तेरी रक्षा को प्रहरी खड़े रात-दिन
वर्फ़ अंगार सहते बढ़ें रात दिन
टेढ़ी चालों का करते हैं पल में दमन
मातृभूमि..….......…..............
नीर नदिया बहे, खेत सोना उगे
प्रेम समभाव की सब में ज्योति जगे
सबके हित में सदा ही बहे यह पवन।
मातृभूमि...….......................
तेरा मस्तक सदा यूं ही ऊंचा रहे।
तेरे गौरव की गाथा हिमालय कहे
लौटकर आएंगे अब हैं करते गमन
मातृभूमि..….........................
कपिल अनिरुद्ध
भाव में रत्त भारत, प्रकाश में रत्त भारत, अनवरत रुप से बहने वाली सांस्कृतिक,आध्यात्मिक धारा, भारत । किसी भोगोलिक इकाई, किसी सीमा, में एक ही समय मैं बंधा भी है और मुक्त भी। यह जाने बिना भारत का गौरव गान हो ही नहीं सकता। त्याग, प्रेम और संवेदना के गुण ही भारत को भारत बनाते है। इन गुणों का हम में अभाव ही भारतीयता का अभाव है। हमारी सीमाओं के प्रहरियों को यह गुण तो जन्म घुट्टी में मिलते हैं। सीमओं का रक्षक तो अंतिम श्वास लेते हुए भी सब की रक्षा, सब के सुख के भाव से ओत प्रोत होता है। इन्हीं भावोंं को अपनी इस कविता में संजोने का प्रयास किया है। यह मेरा भारत नमन है, देश रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त होने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि है।......
मातृभूमि तेरा सुत है तेरी शरण
कर लो स्वीकार मेरा यह अंतिम नमन
तेरी रक्षा को प्रहरी खड़े रात-दिन
वर्फ़ अंगार सहते बढ़ें रात दिन
टेढ़ी चालों का करते हैं पल में दमन
मातृभूमि..….......…..............
नीर नदिया बहे, खेत सोना उगे
प्रेम समभाव की सब में ज्योति जगे
सबके हित में सदा ही बहे यह पवन।
मातृभूमि...….......................
तेरा मस्तक सदा यूं ही ऊंचा रहे।
तेरे गौरव की गाथा हिमालय कहे
लौटकर आएंगे अब हैं करते गमन
मातृभूमि..….........................
कपिल अनिरुद्ध
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